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Aug 02, 2022
क्या होता है सीमन्तोन्नयन संस्कार और इसे घर बैठे कैसे करें?
मनुष्य सम्पूर्ण पृथ्वी पर सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि उसमें सोचने, समझने और व्यवहार करने का ज्ञान और संस्कार होते हैं। और यही कारण है कि मनुष्य जीवन में संस्कारों का विशेष महत्व है। सनातन धर्म में सोलह महत्वपूर्ण संस्कार वर्णित हैं। संसार में आने के पहले से लेकर मृत्यु के बाद तक एक मनुष्य के जीवन में ये सभी संस्कार समय - समय पर किये जाते हैं। इन्हीं सोलह संस्कारों में से तीसरा और जन्म-पूर्व संस्कारों में आखिरी संस्कार है- सीमन्तोन्नयन संस्कार। सीमन्तोन्नयन संस्कार को आम बोलचाल की भाषा में गोद भराई भी कहा जाता है। इस संस्कार का भी अन्य संस्कारों की तरह ही अपना पौराणिक और वैज्ञानिक महत्त्व है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार कब किया जाता है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार गर्भ धारण के सातवें महीने में संपन्न किया जाता है। इस संस्कार को नक्षत्रम् में किया जाता है |
सीमन्तोन्नयन संस्कार की विधि
सीमन्तोन्नयन संस्कार निम्नलिखित विधि से किया जाता है -
सबसे पहली विधि जो इस संस्कार में किया जाता है उसे "विशिष्ट आहूति विधि" कहा जाता है। विशिष्ट आहूति के लिए चावल, मुंग, और तिल की खिचड़ी बनाई जाती है। इसमें गाय के दूध का शुद्ध घी डाला जाता है। इस मिश्रण से यज्ञ के समय पर मंत्रोउच्चारण करते हुए आहूति दी जाती है।
अगली विधि है "सीमन्तोन्नयन"। और इसी के कारण इस संस्कार का नाम सीमन्तोन्नयन संस्कार पड़ा। इसमें होने वाले पिता अपनी गर्भवती पत्नी को आसन पर बैठाते है, उसके पीछे जाकर उसे सुगन्धित तेल लगाते हैं और उसके बालों को कंघी से सवारते हैं। इस प्रक्रिया में बालों को फूलों से सजाकर जुड़ा भी बनाया जाता है। साथ ही संगीत वादन किया और सामवेद के मंत्र पढ़े जाते हैं। यह भी पढ़ें- ये छः संकेत बताते हैं कि गर्भ में शिशु सुरक्षित है!
इसके बाद आता है, "प्रतिबिम्ब को देखना" - इस विधि में आहूति के बाद बची खिचड़ी के बीच में गड्ढा बनाकर उसमें गाय के दूध से बना गरम घी डाला जाता है। खिचड़ी के बर्तन को होने वाले पिता के हाथ में दिया जाता है और गर्भवती स्त्री उस घी में झांक कर प्रतिबिम्ब देखती है। इसके बाद पति संस्कृत में अपनी गर्भवती पत्नी से पूछते हैं - क्या देखा ? माँ संस्कृत में ही जवाब देती है कि- हमारी होने वाली संतान को देखा। इस विधि में माता पिता दोनों उस प्रतिबिम्ब के द्वारा अपनी होने वाली संतान को और उसके उज्जवल भविष्य को देखने का प्रयास करते हैं।
अगला है "शुभ मंगल विधि" - इस विधि में गर्भवती स्त्री को आसन पर बैठाया जाता है और घर की किसी बुजुर्ग महिला द्वारा उसे बची हुई खिचड़ी दी जाती है। उस खिचड़ी को होने वाली माता पूरी आस्था के साथ प्रसाद के रूप में खाती है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार में अलग- अलग विधियों द्वारा सम्पन्न किया जाता है। और इन्हीं विधियों के अनुसार इस संस्कार की सामाग्री निर्धारित होती है। सीमन्तोन्नयन संस्कार की कुछ मुख्य सामाग्री हैं - गणेश जी की मूर्ति, दूर्वा, फूलों के दो हार, सिक्के, कुमकुम, रंगोली, पान के पत्ते, हल्दी, बादाम, तेल का दीपक, कपूर, तुलसी के पत्ते, दीवाली वाली धानी, आसन, ताबें की पूजा थाली, छोटा ग्लास, अक्षत, आम के पत्ते, नारियल, पांच प्रकार के फल, चन्दन, सफ़ेद रूमाल, सुपारी, खारक, बेल पत्र, घी का दीपक, अगरबत्ती, माला बनाने के लिए गूलर के फल, सुघंधित तेल, फूल, खिचड़ी के लिए मुंग, तिल और घी, पटिया, पटिये पर बिछाने का कपड़ा, कलश, हवन कुंड, हवन के लिए घी, बिना नमक का भात, हवन के लिए लकड़ियां, दीपक, हाथ में बाँधने के लिए पचरंगी धागा। इन सामाग्री के अलावा भी अलग - अलग लोग अपनी मान्यताओं के हिसाब से अलग सामग्री इस्तेमाल कर सकते हैं।
क्यों किया जाता है ये संस्कार
सीमन्तोन्नयन संस्कार को करने के पीछे का मुख्य उद्देश्य, गर्भ की शुद्धि करना होता है। इस समय तक शिशु में चेतना और इच्छाओं का विकास शुरू हो जाता है। शिशु की इच्छायें उसकी माँ की इच्छाओं के रूप में प्रकट होती है। ऐसे में जब शिशु के मन और बुद्धि का विकास हो रहा होता है, तो गर्भ शिक्षण योग्य हो जाता है। उसमें बाहर से माता, पिता और परिजन द्वारा जो संस्कार रोपित किए जाते हैं वो बच्चे पर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं। यही कारण है कि सीमन्तोन्नयन संस्कार में घर के लोग और परिजन मिलकर होने वाले बच्चे के स्वस्थ और गुणवान पैदा होने की प्राथना करते हैं। इस संस्कार में सात्विक भोजन बनाया जाता है, जिसका सीधा तात्पर्य ये है कि ऐसा ही भोजन माँ को प्रसव के बाद भी खाना है ताकि बच्चे में अच्छे गुण और सात्विकता का जन्म हो।
सीमन्तोन्नयन संस्कार में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस पूजा को करने से माँ प्रसव के दौरान होने वाली दुविधाओं और डरों से दूर रहती है। पूजन में शंख, चक्र और गदा धारण किये हुए भगवान विष्णु की मूर्ति को माता के कंठ, ह्रदय, माथे और उदर (पेट) पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से भगवान नारायण स्तन में दूध देते हैं, उदर (पेट जहाँ शिशु पल रहा होता है) से पीड़ा खत्म कर देते हैं, कंठ में किसी भी तरह की बाधा नहीं होती है और होने वाला शिशु अच्छे सिद्धांतों वाला पैदा होता है। यह भी पढ़ें- Garbh Sanskar Story - Read These Real Mythological Stories.
इस संस्कार को करने का एक कारण और भी है। और वो ये कि होने वाले पिता से ऐसी आशा की जाती है कि जिस तरह का व्यवहार वो अपनी गर्भवती पत्नी से इस संस्कार के दौरान करता है वो ऐसा ही व्यवहार हमेशा उसके साथ करे। ताकि माँ खुश और चिंता से दूर रहे। साथ ही गाने और संगीत से जो खुशनुमा वातावरण बनाया जाता है वैसा ही माहौल परिवार के सदस्य हमेशा बनाकर रखे। ताकि होने वाले शिशु का पाल पोषण एक सकारात्मक माहौल में हो। और बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास सही तरह से हो सकें।
ऐसी भी मान्यता है कि सीमन्तोन्नयन करते वक़्त, परिवार के सदस्यों के द्वारा ये प्राथना की जाती है कि, जिस तरह से शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा बिरंतर बढ़ता जाता है, उसी तरह से गर्भ की भी वृद्धि हो।
गर्भावस्था में मां को घी से बनी हुई खिचड़ी खिलाने से उसे पर्याप्त ऊर्जा मिलती है और इस प्रक्रिया से माता सदैव अपनी गर्भावस्था में शक्तिशाली एवं स्फूर्तिपूर्ण महसूस करती है। इसलिए सीमांतोनयन संस्कार को करके माँ को शुद्ध घी की खिचड़ी खिलाई जाती है और परिवार के सदस्यों से ये कामना की जाती है कि वो हमेशा माँ को पौष्टिक और सात्विक भोजन खिलाएंगे। ताकि माँ और बच्चे को बल मिले।
उपसंहार
सीमन्तोनयन संस्कार को करने से माता अच्छे आचरण वाले शिशु की प्राप्ति कर सकती है। इस संस्कार में एक माता को शांत व प्रसन्नचित्त रहना चाहिए तथा एक सर्वगुण संपन्न संतान की प्रार्थना करनी चाहिए। अच्छे विचारों वाले माता पिता ही एक गुणी संतान को जन्म दे सकते हैं!
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